वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
28 जुलाई 2019
अद्वैत बोधस्थल ,ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय ३, श्लोक ३५)
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणःपरधर्मात्स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे निधनं श्रेयःपरधर्मो भयावहः ॥
भावार्थः
दूसरों के कर्तव्य का भली-भाँति अनुसरण
करने की अपेक्षा स्वधर्म को दोष-पूर्ण ढंग से
करना भी अधिक कल्याणकारी है।
दूसरे के कर्तव्य का अनुसरण करने से भय उत्पन्न होता है,
और स्वधर्म में मरना भी श्रेयस्कर होता है।
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दुसरे के धर्म का अनुसरण क्यों नहीं करना चाहिए?
स्वधर्म बेहतर क्यों है?
परधर्म भयावह है, ऐसा श्री कृष्ण क्यों कहते हैं?
संगीत: मिलिंद दाते